Wednesday, January 4, 2012

अन्ना के जनांदोलन का अंत की वास्तविक प्रासंगिकता ?



देश को स्वतंत्र हुए इस समय अर्शा हो गया. न तो देश के लोगो की हालत बदली और न ही कोई विशेष परिवर्तन हुए. विकास को देखा जाये तो एक रूटीन के है और उनमे कोई भी भिन्नता नहीं है. इतने वर्षो के बाद भी आज देश की दशा कुछ ज्यादा अच्छी नहीं है. जगह- जगह भ्रष्टो द्वारा जन-धन की ही लूट की गयी और उस धन को अपना घोषित किया गया और जन के विकास की हत्या की गयी. तब समय था जब आम आदमी के पास संचार और जानकारियों के साधन की कमी थी और सत्ता की इतनी पारदर्शिता नहीं थी. तब भी इन भ्रष्टाचारियो के खिलाफ कुछ आवाजे भी उठी थी लेकिन दब गयी या दबा दी गयी. उन स्थितियों का लाभ सत्ता धरी दल कांग्रेस ने खूब उठाया, जनता के भोलेपन और स्वतंत्रता से जुड़े होने के कारण ही या अच्छा विपक्ष न होने के कारण देश के धन को खूब उड़ाया और विदेशो में सुरक्षित किया. बार- बार जनता को मानसिक रूप से स्वतंत्रता के द्रश्य को उभार कर सत्तासीन रहे. तब तो चुनाव तक में कांग्रेस गड़बडिया करती-कराती थी.

तब से चल रहे भ्रष्टाचारियो के खिलाफ आज तक संघर्ष चल ही रहे है. लेकिन कोई कम ही जनता होगा. ये राज्य स्तर पर ही हुए. पहली बार वर्षो से इन भ्रष्टो के खिलाफ संघर्ष कर रहे, महाराष्ट्र में जनता को न्याय दिलाने के करतब दिखने वाले अन्ना जी ने ही तो इस भ्रष्टाचार को राष्ट्रीय स्तर तक लेन की मशक्कत की. धार रक्खी, आम आदमी में भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे को जेहन में भरा. कुछ भी न होगा तो सरकार को भी दिखा ही दिया और झुका दिया कुछ करने को. सरकार ने किया भी. कुछ अच्छा भी करना चाहती थी लेकिन इन भ्रष्टाचारियो को अपने लिए खतरा लगा. बड़ी तेजी से इस जन लोकपाल को कमजोर कर ही नहीं दिया बल्कि जयादा शिकायते न आये, इस लिए आम आदमी को भी बाँध दिया और सजा के साथ- साथ बड़ी धनराशी अदा करने के नियम को लागू कर दिया. यानि सरकारी कर्मचारी ही नहीं नेताओ को बहुत ही खूबी से संरक्षण किया. इस कमजोर लोकपाल विधेयक को भी सरकार पास नहीं करावा पायी. यानि देश के नेताओ ने चाह कभी भी सरकारी धन को चुराने वाले सरकारी या राजनीतिक को कोई हानि न हो पाए. मजबूर सरकार इस बेहूदे और बेकार लोकपाल को अन्ना जी के ही दवाब में लायी. लेकिन उसमे भी कामयाब ना हो पायी. सत्ता में रहने की नैतिकता भी खो कर अब भी  ये भ्रष्ट सरकार सत्तासीन है यही इस देश का दुर्भाग्य है.

जब सरकारी लोकपाल का मसौदा देश ने देखा और अन्ना जी व उनकी टीम ने देखा तो फिर से संघर्ष करने की कोशिश जरी रक्खी. उधर सरकार कांग्रेस और राजनेताओ ने तरह- तरह से मानसिक और आर्थिक चोट पर चोट कर अन्ना जी और उनकी कमिटी को डिगाने के साथ- साथ मिटाने की कोशिश की. कुछ लोग जो सरकारी योजनाओ को अपने गैर सरकारी संगठनो के नाम पर ले रहे थे उन्हें भी जांच आदि का रास्ता दिखा अन्ना जी टीम से तोड़ दिया गया. मीडिया को भी तरह तरह से प्रलोभन दिए गए और अंत में सरकारी लोकपाल से मीडिया को अलग कर सन्देश दिया, अन्ना को मत तानो. और हुआ भी वही.

इधर लोक सभा में जब एक कमजोर और बेकार लोकपाल देश पर थोपा जाने लगा तो अन्ना टीम ने अनशन करने की घोषणा की. अन्ना जी अनशन से पहले बीमार थे, लेकिन देश के लिए इस त्यागी पुरुष ने अनशन करने की भरपूर कोशिश की. बुरी तरह से अनशन स्थल को जनता दूर और सुरक्षा के नाम पर पुलिस से भरपूर कर दिया गया. उसे मीडिया में दिखाया जाने लगा. आबादी से मैदान दूर होने, और बढाती ठंढ के कारण के साथ- साथ सोनिया और कांग्रेस के महारथियों सहित तमाम धमकियों के कारण अनशन स्थल लोग बहुत ही कम आये. उधर अन्ना जी को अपने शारीरिक तकलीफ के कारण अनशन टालना पड़ा. जिसका सत्ता और कांग्रेस के गलियारे में अन्ना जी की हार के रूप में देखा गया. अब देखिये न कोई आदमी बीमार हो तो उसका मन थोड़े ही गिर जायेगा. मजबूरीवश स्थगित किये जाने वाले आन्दोलन को ख़त्म मान लेना ही उसके ऊपर चोट होगी. देश की जनता आज भी अन्ना जी के साथ है और आगे भी रहेगी. आखिर यह भ्रष्टाचार का मुद्दा आज अपना एक अलग छाप आम जनता के मन- मष्तिष्क पर छोड़ गया है. यह तो हालिया ही रुका हुआ है. इसे बंद न मान लिया जाए जब तक अन्ना जी का कोई भी सन्देश न आ जाये. अन्ना के पीछे भी करोडो जनता है कोई न कोई इस मुद्दे को उठता ही रहेगा. देश के लिए इस मुद्दे को तो जारी रहना ही चाहिए और जारी रहेगा.
....................इस लेख को हमने पहले जागरण जंक्शन में प्रकाशित किया फिर यहाँ सुरक्षित कर रहा हूँ.

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