जनता के बीच खूब बहस का अंग और जन संघर्ष की और ले जाने वाला भ्रष्टाचार विरोधी जन लोकपाल की उचाई थम सी रही है. अब तो कुछ बहस थमती नजर आ रही है. चर्चाये कम हो रही है. ऐसा लग रहा है जैसे लोग अब समझ गए है की यह राजनीतिक ब्याभिचारी उस जन लोकपाल को पास नहीं होने देगे. देश की जनता ने अन्ना जी के लोकपाल को समझा और उसे बहुत ही समझदारी से जन समर्थन दिया. ऐसा लगा देश के इन सरकारी व्यभिचारियो और लुटेरो से देश को मुक्ति मिल जाएगी (कृपया जो भ्रष्ट नहीं है उन्हें बुरा नहीं लगे). एक बहुत ही सतर्क निगाहों से जानत ने इस लोकपाल को परखा और जांचा. लोगो तक यह तक गाव की तरह भी पर्चो से बताया गया था हम यानि आप क्या चाहते है? और सरकार क्या चाहती है. हम गलत है या सरकार? कौन करेगा देश का उद्धार ? लोगो ने समझा, सरकार ने जनता को अधेरे में रखने का काम किया और एक ऐसा लोकपाल का मसौदा राहुल गाँधी की सलाह पर तैयार किया जिस पर अतवार कर लिया जाये तो समझो कोई भी नागरिक कभी हिकायत करने का साहस ही नहीं जुटा पायेगा.
आखिर यह स्थिति आयी क्यों, इस पर भी एक नजर डाली जाये. जब भी विचार किया जाता है तो कांग्रेसी और सरकार के सरकारी बाबु लोग जो सीधे या परोक्ष रूप से भ्रष्टाचार में लिप्त है उन्हें यह कानून हजम नहीं हो रहा है. अन्ना जी के दिल्ली के कार्यक्रम में बाधा पहुचने में सरकार ने कोई भी कसर नहीं की थी. फिर तो लोगो का जमाव इकठ्ठा होना सुरु हुआ तो फिर सरकार के छक्के छूट गए. और घशाना करनी पड़ी लोकपाल बिल पेश किया जायेगा. सरकार ने वडा किया. लेकिन स्वरुप बदल कर इसे राजनीतिज्ञों के हितकारी और अड़चन पैदा करने के रूप में शिकायतकर्ता को इतना पीड़ित करने का प्रावधान है की कोई भी हिम्मत ही नहीं कर पायेगा.
कुछ दिन बाद ही इस बिगड़े स्वरुप के कारण अन्ना जी व उनकी टीम ने फिर से अनशन के लिए घोषणा की. सर्दी और स्वास्थ्य की गड़बड़ी के चलते अन्ना जी ने मुंबई में ही अनशन करना मंजूर कर लिया. जिससे फिर से कांग्रेस भी बौखला गयी. कांग्रेस की अब चौतरफा निंदा के कारण सोनिया गाँधी ने भी जनता के सिपाही अन्ना जी को धमकी दे डाली. प्रजातंत्र की हत्या का खड्यंत्र की बू कांग्रेस और उसकी सरकार से आने लगी. सोनिया तो यहाँ तक कहा, जैसे भी हो हम अब कड़ी से निपटेगे. खैर जो भी हुआ, वह दुखदायी रहा. सोनिया की धमकी और अन्ना जी को महाराष्ट्र में अनशन स्थल को शहरियों से पहुच से दूर देना, ठण्ड होना और पुलिस की इतनी व्यवस्था की जनता आने में भी हिचकने लगी. उसी बीच स्वास्थ्य ख़राब होने से अन्ना जी ने भी अनशन से छुट्टी करने के साथ ही जेल भरो आन्दोलन भी स्थगित कर दिया. इसके साथ ही कांग्रेस के खिलाफ बिगुल फूकने की घोषणा करने वाले अन्ना जी की टीम को लगा उत्तर प्रदेश में कांग्रेस वैसे भी कमजोर है और आन्दोलन को विराम दे विरोध में उत्तर प्रदेश के दौरे को भी ख़त्म कर दिया. इससे भी आम जनता में कोई अच्छा सन्देश नहीं गया. इसी के साथ ही अब उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने के लिए चुनाव होने के कारण जनता चुनाव में लग गयी है. अब भ्रष्टाचार की बाते और लोकपाल पीछे पड़ रहा है.
आखिर जनता भी जिसे लोकपाल की जरुरत है वह भी हैण्ड तो माउथ है. भला कैसे तमाम दिन रुक जाये प्रदर्शन के लिए. फिर भी जिस लगन के साथ जनता ने साथ दिया तो अन्ना जी की कमिटी को चाहिए था, की लोकपाल को जब तक न्याय नहीं मिल जाता तब तक प्रदर्शन जरी रक्खा जाता.
आखिर यह स्थिति आयी क्यों, इस पर भी एक नजर डाली जाये. जब भी विचार किया जाता है तो कांग्रेसी और सरकार के सरकारी बाबु लोग जो सीधे या परोक्ष रूप से भ्रष्टाचार में लिप्त है उन्हें यह कानून हजम नहीं हो रहा है. अन्ना जी के दिल्ली के कार्यक्रम में बाधा पहुचने में सरकार ने कोई भी कसर नहीं की थी. फिर तो लोगो का जमाव इकठ्ठा होना सुरु हुआ तो फिर सरकार के छक्के छूट गए. और घशाना करनी पड़ी लोकपाल बिल पेश किया जायेगा. सरकार ने वडा किया. लेकिन स्वरुप बदल कर इसे राजनीतिज्ञों के हितकारी और अड़चन पैदा करने के रूप में शिकायतकर्ता को इतना पीड़ित करने का प्रावधान है की कोई भी हिम्मत ही नहीं कर पायेगा.
कुछ दिन बाद ही इस बिगड़े स्वरुप के कारण अन्ना जी व उनकी टीम ने फिर से अनशन के लिए घोषणा की. सर्दी और स्वास्थ्य की गड़बड़ी के चलते अन्ना जी ने मुंबई में ही अनशन करना मंजूर कर लिया. जिससे फिर से कांग्रेस भी बौखला गयी. कांग्रेस की अब चौतरफा निंदा के कारण सोनिया गाँधी ने भी जनता के सिपाही अन्ना जी को धमकी दे डाली. प्रजातंत्र की हत्या का खड्यंत्र की बू कांग्रेस और उसकी सरकार से आने लगी. सोनिया तो यहाँ तक कहा, जैसे भी हो हम अब कड़ी से निपटेगे. खैर जो भी हुआ, वह दुखदायी रहा. सोनिया की धमकी और अन्ना जी को महाराष्ट्र में अनशन स्थल को शहरियों से पहुच से दूर देना, ठण्ड होना और पुलिस की इतनी व्यवस्था की जनता आने में भी हिचकने लगी. उसी बीच स्वास्थ्य ख़राब होने से अन्ना जी ने भी अनशन से छुट्टी करने के साथ ही जेल भरो आन्दोलन भी स्थगित कर दिया. इसके साथ ही कांग्रेस के खिलाफ बिगुल फूकने की घोषणा करने वाले अन्ना जी की टीम को लगा उत्तर प्रदेश में कांग्रेस वैसे भी कमजोर है और आन्दोलन को विराम दे विरोध में उत्तर प्रदेश के दौरे को भी ख़त्म कर दिया. इससे भी आम जनता में कोई अच्छा सन्देश नहीं गया. इसी के साथ ही अब उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने के लिए चुनाव होने के कारण जनता चुनाव में लग गयी है. अब भ्रष्टाचार की बाते और लोकपाल पीछे पड़ रहा है.
आखिर जनता भी जिसे लोकपाल की जरुरत है वह भी हैण्ड तो माउथ है. भला कैसे तमाम दिन रुक जाये प्रदर्शन के लिए. फिर भी जिस लगन के साथ जनता ने साथ दिया तो अन्ना जी की कमिटी को चाहिए था, की लोकपाल को जब तक न्याय नहीं मिल जाता तब तक प्रदर्शन जरी रक्खा जाता.